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दरअसल मैं कईयों की अमानती हूँ ||
Hindi Poetry |
आज नहीं तो कल रुबरू होगा इन तस्वीरों का सच,
तुने ही बदले है इनके रुख, मैं जानती हूँ ||
कौन कहता है की तू पाक निकल जाएगा ,बेशक चालाक बड़ा है,
अभी जिन्दा हूँ कुछ सांसो में,मेरे कातिल मैं तो तुझे पहचानती हूँ ||
खुश ना हो मेरे थमने से, वो तो जरा सुस्ता रही हूँ,
जरा बटोर लू कुछ ताकत, अभी वक्त है बुरा मैं मानती हूँ ||
मुझे बेखौफ देख ना समझना की मेरा कोई खुदा नहीं,
दरअसल मैं कईयों की अमानती हूँ ||