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बन गयी एक ग़ज़ल सोच लो…
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बाल की खाल गर नोच लो,
बन गयी एक ग़ज़ल सोच लो .
है ज़माना बहुत ही अलग,
हम वही हैं फ़कत सोच लो .
उनको चलना अकड़कर खला,
खुश हैं अब देखकर लोच लो .
कुछ कदम ही चले थे मगर,
आ गयी पैर में मोच लो .
अब कहें भी तो कैसे कहें,
अब छुपाएँ तो क्या सोच लो .
* हरीश चन्द्र लोहुमी