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लम्हा महकता …***
Hindi Poetry |
लम्हा महकता …
सोया करते थे कभी जो रख के सर मेरे शानों पर
गिरा दिया क्यों आज पर्दा घर के रोशनदानों पर
तपती राहों पर चले थे जो बन के हमसाया कभी
जाने कहाँ वो खो गए ढलती साँझ के दालानों पर
होती न थी रुखसत कभी जिस नज़र से ये नज़र
लगा के मेहंदी सज गए वो गैरों के गुलदानों पर
कैसा मैख़ाना था यारो हम रिन्द जिसके बन गए
छोड़ आये हम निशाँ जिस मैखाने के पैमानों पर
देख कर दीवानगी हमारी कायनात भी हैरान है
किसको तकते हैं भला हम तन्हा आसमानों पर
देखना मुड़ मुड़ के हमको उस गली के छोर तक
ज़िंदा है वो लम्हा महकता दिल के अरमानों पर
सुशील सरना
Khuubsoorat ….!
thanx for ur encouraging comment aadrneey sir