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दिल-ए-वहशी को …

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दिल-ए-वहशी को …

दिल-ए-वहशी को आखिर संभाले कब तक
हर सिम्त उसकी यादों का गुबार उठता है
ओस टपकी थी उसके चश्म से .जहाँ-जहाँ
उसके शबाब को ..हर .गुल पुकार उठता है

सुशील सरना

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