« सांस है मुसाफिर……. | और उनपे तैरते चिकने कई घड़े देखे » |
|| बसंत पंचमी पर सरस्वती प्रेरण ||
Hindi Poetry |
कैसे हम ये मानें कि नयी राहें
मोड़ नहीं सकते
हम सरस्वती के अग्र कर हैं
लिखना छोड़ नहीं सकते
ये लगन हमारी है कि हम
सुविचार हैं
हर रुकावट हमें रोकने में
लाचार है
चिन्तन चिता के भय से मस्तिष्क
फोड़ नहीं सकते
हम सरस्वती के अग्र कर हैं
लिखना…
कुछ सोचकर ही बापू ने
स्वराज था चाहा
कुछ सोचकर ही उन वीरों
का रक्त था बहा
है कौन सा सेतु जिसे लहू से
जोड़ नहीं सकते
हम सरस्वती के अग्र कर हैं
लिखना…
हर चीज़ हम से कर रही है
ज़िंदगी बयां
बाँहें पसारो तुम्हारे लिए खड़ा
देखो आसमां
हैं इंसां तो क्या दु:ख सुख चादर
ओढ़ नहीं सकते
हम सरस्वती के अग्र कर हैं
लिखना छोड़ नहीं सकते
कैसे हम ये मानें कि नयी राहें
मोड़ नहीं सकते
~ रीतेश खरे
‘सब्र रीत जबलपुरी’
Badhiyaa abhivyakti
manbhaavan sundar rachanaa
Hardik badhaaii ….! (Y)
Dhanyavaad Dada…aapka utsaahvardhak comment bahut hee sukh deta hai!