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|| बसंत पंचमी पर सरस्वती प्रेरण ||

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Hindi Poetry

कैसे हम ये मानें कि नयी राहें
मोड़ नहीं सकते
हम सरस्वती के अग्र कर हैं
लिखना छोड़ नहीं सकते

ये लगन हमारी है कि हम
सुविचार हैं
हर रुकावट हमें रोकने में
लाचार है
चिन्तन चिता के भय से मस्तिष्क
फोड़ नहीं सकते

हम सरस्वती के अग्र कर हैं
लिखना…

कुछ सोचकर ही बापू ने
स्वराज था चाहा
कुछ सोचकर ही उन वीरों
का रक्त था बहा
है कौन सा सेतु जिसे लहू से
जोड़ नहीं सकते

हम सरस्वती के अग्र कर हैं
लिखना…

हर चीज़ हम से कर रही है
ज़िंदगी बयां
बाँहें पसारो तुम्हारे लिए खड़ा
देखो आसमां
हैं इंसां तो क्या दु:ख सुख चादर
ओढ़ नहीं सकते

हम सरस्वती के अग्र कर हैं
लिखना छोड़ नहीं सकते
कैसे हम ये मानें कि नयी राहें
मोड़ नहीं सकते

~ रीतेश खरे
‘सब्र रीत जबलपुरी’

2 Comments

  1. Vishvnand says:

    Badhiyaa abhivyakti
    manbhaavan sundar rachanaa
    Hardik badhaaii ….! (Y)

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