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मैं दूर खड़ी हूँ

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Hindi Poetry

इस दिल में चलती आँधियाँ
कंही परतें उठाती
तो कंही मिटटी बिछाती हुई
कंही सदियों से खड़े वृक्षों से लड़ती
तो कंही रंगीन चुनरिया उड़ाती हुई
मैं दूर खड़ी हूँ
कोसों दूर
कोशिश में हूँ
इस बार ये आंधी थमे नहीं
इस बार कोई परतें छुपे नहीं
जहाँ बिछनी है मिटटी बिछ जाए इस तरह
किसी तूफ़ान से भी फिर ये हटे नहीं
जिनकी जड़ें बहुत गहरी है इस दिल की मिटटी में
मुझे यकीन है
वो इस आंधी से लड़ के भी खड़े रहेंगे
अटल
अडिग
और निर्भय यूँही
हल्के से टूटे पर बिखरे नहीं
और वो जो नहीं लड़ पाएंगे
वो गुम हो जाये कंही
क्षितिज में छुपते सूरज की तरह
समंदर में खोती लहरों की तरह
बारिश में घुलते अश्कों की तरह
और एक रात उभरती सुबह की तरह
मैं दूर खड़ी हूँ
कोसों दूर
कभी सहमी तो कभी मुस्कुराती हुई
इंतज़ार में हूँ
कब ये आंधी थमे कब शाम ढले
और फिर
एक सवेरा हो फिर से
नयी कोपल खिले अडिग वृक्षों की छाँव में
बेख़ौफ़ बहती मस्त हवाओं में
मैं दूर खड़ी हूँ
कोसों दूर ।

2 Comments

  1. sushil sarna says:

    waaaaaaaaah beautiful expressions

  2. Vishvnand says:

    Bahut badhiyaa abhivyakti aur sundar manbhaavan rachanaa
    Heary commends …!

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