मैं दूर खड़ी हूँ
इस दिल में चलती आँधियाँ
कंही परतें उठाती
तो कंही मिटटी बिछाती हुई
कंही सदियों से खड़े वृक्षों से लड़ती
तो कंही रंगीन चुनरिया उड़ाती हुई
मैं दूर खड़ी हूँ
कोसों दूर
कोशिश में हूँ
इस बार ये आंधी थमे नहीं
इस बार कोई परतें छुपे नहीं
जहाँ बिछनी है मिटटी बिछ जाए इस तरह
किसी तूफ़ान से भी फिर ये हटे नहीं
जिनकी जड़ें बहुत गहरी है इस दिल की मिटटी में
मुझे यकीन है
वो इस आंधी से लड़ के भी खड़े रहेंगे
अटल
अडिग
और निर्भय यूँही
हल्के से टूटे पर बिखरे नहीं
और वो जो नहीं लड़ पाएंगे
वो गुम हो जाये कंही
क्षितिज में छुपते सूरज की तरह
समंदर में खोती लहरों की तरह
बारिश में घुलते अश्कों की तरह
और एक रात उभरती सुबह की तरह
मैं दूर खड़ी हूँ
कोसों दूर
कभी सहमी तो कभी मुस्कुराती हुई
इंतज़ार में हूँ
कब ये आंधी थमे कब शाम ढले
और फिर
एक सवेरा हो फिर से
नयी कोपल खिले अडिग वृक्षों की छाँव में
बेख़ौफ़ बहती मस्त हवाओं में
मैं दूर खड़ी हूँ
कोसों दूर ।
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waaaaaaaaah beautiful expressions
Bahut badhiyaa abhivyakti aur sundar manbhaavan rachanaa
Heary commends …!