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यादों के बनपाखी मन की शाखों पर
Hindi Poetry |
यादों के बनपाखी मन की शाखों पर
बैठे ज्यों ही,ओस गई झर आँखों पर
रात अँधेरी लगती और अँधेरी सी
इच्छादीप भभकते हैं जब ताखों पर
शहर तमाम तमन्नाओं के ख़ाक हुये
खिले दर्द के फूल सुलगती राखों पर
तुझे छोड़ कर कहीं बसेरा और करें
अब इतना विश्वास न बाक़ी पाँखों पर
बड़ा हुआ ख़ुदगर्ज शहर आके सूरज
कुछ पर क़रम रखे, कंजूसी लाखों पर
डरे रोशनी अब तो भीतर आने से
खिड़की पर ही चिपटी रहे सलाखों से
khub
Sundar ….! (Y)