शबो रोज़ दीदे यार मिले
दुआ न ये थी शबो रोज़ दीदे यार मिले
थी आरज़ू तो न बेज़ा कभी कभार मिले
न सीखी उसने ज़रा भी किसी की दिलजोई
कि उसको मिल के मिले जो भी, दिलफ़िग़ार मिले
संभल के, सोच के रखना किसी पे हाथ ज़रा
यहाँ न जाने जुड़ा किससे किसका तार मिले
ज़रूरी ये न यहाँ कत्तई समझियेगा
वहाँ पे वो हो, जहाँ जिसका इश्तिहार मिले
कि सादगी है यहाँ बेशतर मुखौटा भर
वगरना सौ मे पिछत्तर तो आर पार मिले
इस आरज़ू में हुये खाक़रू कई गुंचे
कभी बराये क़रम मौसमे बहार मिले
जमाले यार का उसके सिवा जवाब कहाँ
जमाले यार सा केवल जमाले यार मिले
बदल वो खुद ही गये आज जिनका दावा था
बदल के रख दूं जहां को जो अख्तियार मिले
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wah! wah! bahut sunder.