« चली बिहंस बिजुरिया गिराती नित मुझको रह मारी | “जो हैं मन से माँ” » |
रह किस्मत के मारे इक इक छोर बंधे रह आये
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रह किस्मत के मारे इक इक छोर बंधे रह आये
हारे दुनिया से डर बेबस मर मर दोनों रह आए
कसमे वादे छूट चले भर भर आँखें रह आये
कसमस तरस तड़प बिछुरे दिल दोनों रह पछताए
पर इक दूजे में था कुछ जो बरबस खींचा जाता
तुम न रहीं छूटी मुझसे तुमको मैं छोड़ न पाता
हुए जुदा तन बेबस हाय न मन पर माना आया
तुम न भुलाईं भूलो मुझे न भुला तुम्हें मैं पाया
बरस मास दिन संग तुम्हारे रह बीते जो आये
स्मृतियों में भर संजोया री रीता मन जाए
जीवन सूने मरघट सा सूझे न किया क्या आऊँ
संग न साथी तुमसा दूजा किससे मैं बतियाऊँ
हाय हुआ क्यूं ऐसा हम तुम कौन सोच थक आऊँ
कौन आह इक दूजे के हम सोच थका रह आऊँ
दिल बेचैन बिना इक दूजे रहता कुछ न सुहाए
प्रेम सदा पागल बिन पागलपन न प्यार हो पाए
रह रह जतन किये कितने पर बसीं पलक में छाई
मूरत प्यारी तक तकती आँखें न थकी रह आईं
नियत रची क्या आई जाने किन जन्मों का नाता
तुम बिन मन बेचैन पुकारा रट रट तुमको जाता
प्राण एक तन दो बिछुरे री दोनों पड़े अधूरे
देखे सपने मिल संग जाने कब प्यारी हों पूरे
आह मिलन हो कब फिर कब फिर सोचा जाता पल छिन
रूह तरसती प्यासी तुम बिन दिन काटूं मैं गिन गिन
आह मिलन हो कब फिर कब फिर सोचा जाता पल छिन
रूह तरसती प्यासी तुम बिन दिन काटूं मैं गिन गिन…! Vaah
Sundar rachanaa, manbhaayii …!