« आप की हर अदा निराली है | एक शब यार बिन तो रहे » |
बने जो आप से रस्तों में कुछ ग़ुलाब रखो
Hindi Poetry |
किसी तरीक़े से जी लो कोई हिसाब रखो
हो एहतियात कि नीयत न बस ख़राब रखो
दबा के सच को रखोगे तो दुख ही पाओगे
हथेलियों में छुपा कर न आफ़ताब रखो
नशा निगाहे सनम सा न पा सकोगे कहीं
तुम अपने जाम में कोई सी भी शराब रखो
हरेक ग़ाम पे दुनिया बिछाये बस काँटे
बने जो आप से रस्तों में कुछ ग़ुलाब रखो
जमीर बेच के पाये ज़ख़ीरे जो ज़र के
फलेंगे ये न हमें आप ही जनाब रखो
वाह….बहुत सुन्दर. बधाई.