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इंतज़ार
Hindi Poetry |
है चाहत मिलने की उनसे,
कि अब भी हम आस लगाये बैठे हैं
वो याद भी नहीं करते,
और हम यादें सजाएं बैठे हैं
कोई उम्मीद नहीं दी उन्होंने,
पर हम ही हैं,
जो बाहें फैलाएं बैठे हैं
न होगा आमना सामना ,
तो बैचैनी बनी रहेगी
उनसे कोई तो जाकर पूछे
क्या हमें सच में भुलाये बैठे हैं ??
Vaah..Manbhaavan abhivyakti …!