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तन्हा खड़ी हूँ….

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Hindi Poetry

तन्हा खड़ी हूँ….

उस दिन
जब तुमने मेरे काँधे पे
अपना हाथ रखा था
कितने ख़ुशनुमा अहसास
मेरे ज़हन में
उत्तर आये थे
लगा भटकी कश्ती को
जैसे साहिलों ने
अपनी आगोश में ले लिया हो
मगर मैं उन सुकून देते लम्हों को
कहाँ पहचान पायी थी
क्या खबर थी कि तुम
इज़हारे मुहब्बत के बहाने
मेरे कमजोर कांधों की
ताकत नाप रहे थे
मैंने तुम्हें अपना सागर मान
अपने वज़ूद को
तुम्हें सौंप दिया
आज तक
तुम्हारी उँगलियों की वो छुअन
दूर तक मेरे ज़िस्म में
आज भी जीवित है
और मैं
हथेली पर गिरी
हकीकत की इक बूँद के साथ
आज भी तन्हा खड़ी हूँ

सुशील सरना

2 Comments

  1. Prem Kumar Shriwastav says:

    Waah.

  2. sushil sarna says:

    aadrneey Prem Kumar Shriwastav jee aapkee srahana ka shukriya

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