« “मुक्तक” | हक़ीक़त को नज़रअन्दाज़ करिये। » |
समझ न लेंना कहानी कहे हैं हम कोई।
Hindi Poetry |
1
बोलने का हुनर नहीं आया
कोशिशें कीं ,मगर नहीं आया।
उसके बच्चे तड़प रहे भूखे
वो परिंदा जो घर नहीं आया।
2
तमीज़ है न है तहज़ीब का भरम कोई।
गया है घोल के पी सब हया शरम कोई।
फरेबो मक़्र में सब एक से हैं बढ़ के एक,
इस अंजुमन में किसी से नहीं है कम कोई।
सुना रहे हैं तुम्हें दिल पे अपने जो गुजरी,
समझ न लेंना कहानी कहे हैं हम कोई।
न कोई कंस,न रावण अमर हुआ अब तक,
हरेक अहद में मसीहा भी ले जनम कोई।
सितम की तुमने रिवायत जो आज है डाली,
इसे भी आके करेगा कभी ख़तम कोई।
Vaah , bahut badhiyaa
Commends …! 🙂