« ये ज़िन्दगी है सराब जैसी। | உன் பிரிவே; என் பஞ்சதம்! » |
अपनी तो ताफलक़ उड़ानें हैं।
Hindi Poetry |
अपनी तो ताफलक़ उड़ानें हैं।
उतनी ऊँची कहाँ मचानें हैं।
ख़त्म दौरे ख़िजां न होता है
और हमें गुल नये खिलाने हैं।
उनसे ये मसअला न हल होगा
वो ज़रा ज़्यादा ही सयाने हैं।
किसने बिजली से मुख़बिरी की है
किस जगह अपने आशियाने हैं।
पार शायद कि हम भी हो जायें
आजकल बह रहे बहाने हैं।