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कलियां चुपके से चटकीं हैं
Hindi Poetry |
मुद्दे से भरसक भटकी है।
बहस कुतर्कों पर लटकी है।
कभी व्यक्तिगत वार हुये थे
अब भी बात वहीं अटकी है।
धारा भले लगे गंदलाई
मगर गंदगी ये तट की है।
भले रहे बेख़बर बाग़बां
कलियां चुपके से चटकीं हैं।
कहीं बुलेट तक पहुंच न जाये
ये जो लड़ाई बैलट की है।
काम कभी सीधे न करे वो
क्या कुछ टेढ़ बनावट की है।
हमेशा की तरह कसा हुआ मंजा हुआ सिद्धनाथ कलाम 🙂
thanks.reetesh ji
Vaah vaah bahut badhiyaa ….!
commends …!
Kuch bhii kaam n hone paaye
sanasad me bas udham machaayen
Desh ye chaahe jahnum jaaye
nazar vote par hii atakii hai ….! 😉