« कब तलक ख़्वाबों से हम बहला करें | अपनी तो ताफलक़ उड़ानें हैं। » |
ये ज़िन्दगी है सराब जैसी।
Hindi Poetry |
न सच सरीखी न ख़्वाब जैसी
ये ज़िन्दगी है सराब जैसी।
न जाने क्यों वो हमेशा रुख़ पर
लगा के रखता नक़ाब जैसी।
लबों पे सबके लिए दुआयें
मगर हैं आँखें उक़ाब जैसी।
दुआ करो लग सकें दुआयें
हुई है हालत ख़राब जैसी।
चुभाता जाये अगरचे काँटे
करे वो बातें ग़ुलाब जैसी।
कहे कि जनता का है वो सेवक
अकड़ अगरचे नवाब जैसी।
(Y) ..Bahut Badhiyaa ….!
Commends…!