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आरती मंदिरों मस्जिदों में आज़ान ढूंढते रहे…
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दिल नहीं दिल की ज़ुबान ढूंढते रहे
बात करनी न थी उनवान ढूंढते रहे
कैसे उम्मीद का दामन कोई छोड़ दे
लाशों में भी कुछ लोग जान ढूंढते रहे
सियासतों का खेल सब खेल सकते नहीं
हिन्दू कोई मुस्लिम हम हिंदुस्तान ढूंढते रहे
सारा शहर जला के रख दिया किसी ने
आरती मंदिरों मस्जिदों में आज़ान ढूंढते रहे
ये कैसा शहर देखा मेरी निगाहों ने खुदा
भीड़ क़यामत की थी हम इंसान ढूंढते रहे
बालिश्तों से नाप नाप के बाँट ली जमीन
शकील अपने हिस्से का आसमान ढूंढते रहे
वाह वाह बेहद बढ़िया, क्या बात है….!
आ गयी उम्मीद की इक नयी लहर
जब हम थके से पढ़ने कोई ऐसी ही नज़्म ढूंढते रहे ….!
Hearty kudos