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नारी मन …..***
Hindi Poetry |
नारी मन …..
एक लंबे
अंतराल के पश्चात
तुम्हारा इस घर मेंं
पदार्पण हुअा है
जरा ठहरो !
मुझे नयन भर के तुम्हें
देख लेने दो
देखूं ! क्या अाज भी
तुम्हारे भुजबंध
मेरी कमी महसूस करते हैं ?
क्या अाज भी
तुम्हारी तृषा
मे्रे सानिध्य के लिए
अातुर है ?
जरा रुको
मुझे शयन कक्ष की दीवारों से
उन एकांत पलों के
जाले उतार लेने दो
जहां अपनी नींदों को
दूर सुलाकर
मैनें तिमिर को
सखी बनाया था
रुको तो सही
तुम्हारे स्वागत मेंं मुझे
कक्ष की दीवार पे टंगी
तमाम उलझनों
और तनावों को
हटा लेने दो
ताकि मैं तुम्हें
तुम्हारी तलाश का
वातावरण दे सकूं
बस थोड़ी प्रतीक्षा और
पहले मैं अपने बदन की चद्दर को
मोगरे की महक से महका कर
पलंग पर बिछा दूँ
ताकि तुम्हारे बाहुपाश
मेरे सानिध्य से निराश न होंं
और एकाकार के पश्चात
प्रश्नों की व्याकुलता पर
अंतिम विराम लग जाए
जब तृप्ति अतृप्ति का
खेल समाप्त हो जाए
तब कोहरे में ढकी
अलसाई सी भोर में
बिस्तर की सलवटें में
तुम्हें कुछ सिसकियाँ
सुनाई देंगी
छू के देखना अपने गालों को
मेरे खारे आंसूओं का
गीलापन तुम्हें महसूस होगा
सच मेरे प्रेम के
चरम को तुम समझ न पाओगे
आश्वासनों के चंद शब्दों से
तुम मुझे बहला जाओगे
अपने अधरों से
प्रेम प्रदर्शन कर
फिर लौट जाओगे
पुरुष हो इसलिए तुम शायद
नारी मन की
व्यथा न समझ पाओगे
सुशील सरना
Bahut sundar rachana, Manbhaayii
Commends …!
thanks for ur sweet comment aa.Vishvnand sir
निः शब्द..स्तब्ध..मन दर्पण !
Thanks aa.Reetesh sabar jee for ur sweet comment
Beautiful Sushil ji….capturing emotions so vividly and realistically from a woman’s point of view. Commendable !!
aadrneeya Renu Rakheja jee prastuti aapkee aatmeey prashansa se upkrit huee . is oorjavaan prashansa ke liye aapka haardik aabhaar . vilamb ke liye kshama chaahoonga.