« »

प्याज़ का ये कैसा मिज़ाज

1 vote, average: 4.00 out of 51 vote, average: 4.00 out of 51 vote, average: 4.00 out of 51 vote, average: 4.00 out of 51 vote, average: 4.00 out of 5
Loading...
Hindi Poetry

छीलो तो रुलाये
बिन छिले भी रुलाये

प्याज़ का ये कैसा मिज़ाज
कभी भाव कितना बढ़ जाए
कभी इतना गिर जाए

क्या करे किसान
लगाए खेती में अपनी जान
बांधे उपज से उम्मीद
फले अच्छी तो आए मुस्कान

मगर तबियत हो ढीली
प्याज़ जो आँख सी गीली
मंडी जिसे ठुकराए
कौड़ी क़ीमत लगाए

छीलो तो रुलाये
बिन छिले भी रुलाये

किसान रहे हैरान
खेती उसकी न उस पे मेहरबान
लागत ही न निकले
लगे उसको लुटा-लुटा सा जहान

बंद और हड़ताल फेरे पानी
तोड़े किसान को खींचा-तानी
दिल प्याज़ में डूबा जाए
कैसे परिवार चलाए

छीलो तो रुलाये
बिन छिले भी रुलाये

http://www.rediff.com/business/report/nashik-farmer-gets-5-paise-per-kg-for-onions/20160825.htm

3 Comments

  1. Vishvnand says:

    सुन्दर, मनभावन, भावनिक और अर्थपूर्ण,
    रचना के लिए हार्दिक अभिनन्दन …!
    क्यूँ बनी है ऐसी system कि बढे भाव में भी बीच के बनिया ही ले जाएँ सारा नफ़ा
    और बेचारे किसान जो उगाएं फसल हैं उन्हें ही मंहगाई में भी भाव मिले बहुत कम। ..! 🙁

  2. धन्यवाद विश्व दादा!

    ये तंत्र, ये सिस्टम…यही तो लील रहा है हर तरह की नैसर्गिकता.

    हम बस यूँ आवाज़ उठाते जाएंगे, कोई नहीं सुनेगा तो एक रोज़

    ईशवर ओ अल्लाह तो सुनेंगे…

    बस उन्हीं का आसरा है !!!

  3. Rajesh Ojha says:

    सटीक और सामयिक। बहुत खूब।

Leave a Reply