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प्याज़ का ये कैसा मिज़ाज
Hindi Poetry |
छीलो तो रुलाये
बिन छिले भी रुलाये
प्याज़ का ये कैसा मिज़ाज
कभी भाव कितना बढ़ जाए
कभी इतना गिर जाए
क्या करे किसान
लगाए खेती में अपनी जान
बांधे उपज से उम्मीद
फले अच्छी तो आए मुस्कान
मगर तबियत हो ढीली
प्याज़ जो आँख सी गीली
मंडी जिसे ठुकराए
कौड़ी क़ीमत लगाए
छीलो तो रुलाये
बिन छिले भी रुलाये
किसान रहे हैरान
खेती उसकी न उस पे मेहरबान
लागत ही न निकले
लगे उसको लुटा-लुटा सा जहान
बंद और हड़ताल फेरे पानी
तोड़े किसान को खींचा-तानी
दिल प्याज़ में डूबा जाए
कैसे परिवार चलाए
छीलो तो रुलाये
बिन छिले भी रुलाये
http://www.rediff.com/business/report/nashik-farmer-gets-5-paise-per-kg-for-onions/20160825.htm
सुन्दर, मनभावन, भावनिक और अर्थपूर्ण,
रचना के लिए हार्दिक अभिनन्दन …!
क्यूँ बनी है ऐसी system कि बढे भाव में भी बीच के बनिया ही ले जाएँ सारा नफ़ा
और बेचारे किसान जो उगाएं फसल हैं उन्हें ही मंहगाई में भी भाव मिले बहुत कम। ..! 🙁
धन्यवाद विश्व दादा!
ये तंत्र, ये सिस्टम…यही तो लील रहा है हर तरह की नैसर्गिकता.
हम बस यूँ आवाज़ उठाते जाएंगे, कोई नहीं सुनेगा तो एक रोज़
ईशवर ओ अल्लाह तो सुनेंगे…
बस उन्हीं का आसरा है !!!
सटीक और सामयिक। बहुत खूब।