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काश
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काश वो चाँद
आज भी आसमा मे होता
वो मासूम सा उजाला रात का
काश आज भी रवा होता
काश आज भी मैं सिर्फ मैं तुम्हारे ख्याल मे होता
क्यों तुम आजमाने चली गयी संसार को
काश मैंने जब तुम्हे आगाह किया था
तुमने मान लिया होता
जिद थी तुम्हरी या समझ थी
जब तुमने कहा था मुझसे
कीै मैं काबिल नहीं तुम्हारे
काश इस बात मुझे पता होता
भावों का दर्शनीय गाम्भीर्य ! वाह !