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गीत मैं तेरे लिखूँ, हाये, मैं काबिल कहाँ ….!(गीत)
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गीत मैं तेरे लिखूँ,
हाये, मैं काबिल कहाँ ….!(गीत)
तुम हंसीं बड़ी हंसीं हो,
देख के दिल ने कहा,
गीत मैं तेरे लिखूँ,
हाये, मैं काबिल कहाँ,
तुम हंसीं …..
भोली बड़ी आँखे तेरी,
मदहोश कर गयीं,
फूल से सुन्दर चहरे पर,
जुल्फें थीं बिखरी हुईं ,
तुम जो हंसें तो ऐसे लगे,
खिल उठा चमन.
तुम हंसीं बड़ी हंसीं हो,
देख के दिल ने कहा,
गीत मैं तेरे लिखूँ,
हाये, मैं काबिल कहाँ,
तुम हंसीं …..
शर्मा गई है चांदनी,
देख के तेरा बदन,
बोली में तेरी है अमृत भरा
जीते सभी का जो मन.
हिरनी जैसी तेरी चाल से
दिल में हो मीठी चुभन,
तुम हंसीं बड़ी हंसीं हो,
देख के दिल ने कहा,
गीत मैं तेरे लिखूँ,
हाये, मैं काबिल कहाँ,
तुम हंसीं …..
मैं क्या करूँ,
समझूँ न कुछ,
माने न मेरा ये मन,
जाना है ना पहचाना तुझे
माने है तुझको सनम,
पास तेरे मँडराता रहे ,
तुझसे ही चाहे मिलन ….
तुम हंसीं बड़ी हंसीं हो,
देख के दिल ने कहा,
गीत मैं तेरे लिखूँ,
हाये, मैं काबिल कहाँ,
तुम हंसीं …..
” विश्व नन्द”