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मजबूर मैं था और क्या था मेरा ख़ुदा भी…
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मजबूर मैं था और क्या था मेरा ख़ुदा भी
वो था मेरा और फिर हुआ मुझसे जुदा भी
कुछ तो हालत ख़राब थी कुछ की हमने
कुछ तबाह करने में काम आईं हैं ये दवा भी
क्या कहकशाँ का कोई दावा किया कभी मैंने
बेअसर कर दी गईं क्यों मेरी मज़लूम दुआ भी
जल रही है तमन्नाओं की चिताएँ क्या कहीं
उम्मीदों के चेहरों पर देखता हूँ काला धुआँ भी
ज़ुल्म अबकी किसी की यादों ने किया मुझपर
नश्तर लिए फिरती है जैसे यहाँ की हवा भी
सब बहाने तो आज़माएँ हैं शकील हमने
किस बहाने से आए मौत तू कभी बता भी