« पुराना सिक्का : मैं | धागे अपने दरम्यान » |
हम..
Hindi Poetry |
वो बीज बोटा रहा,मैं खेत बनती रही
इस तरह हम.. फसल उगने का इन्तजार करते रहे !!
वो दाने लाता रहा मै स्वाद पकाती रही
इस तरह हम .. भूक मिटने का इन्तजार करते रहे!!
वो सपने बुनता रहा मैं धागे सुलझाती रही
इस तरह हम.. उम्मीद पूरी होने का इन्तजार करते रहे!!
वो साल बटोरता रहा मैं मौसम खर्च करती रही
इस तरह हम.. जिंदगी गुजारने का प्रयास करते रहे!!
वो याद दिलाता रहा, मैं भूल जाया करती रही
इस तरह हम.. रिश्ते निभाने का स्वांग करते रहे!!
Good one.
Kusum