« Kilaldriffe’s hill. | पीते-पीते आज करीना » |
देह बनी रोटी का जरिया
Hindi Poetry |
वक़्त बना जब उसका छलिया
देह बनी रोटी का जरिया
ठोंक-बजाकर देखा आखिर
जमा न कोई भी बंदा
‘पेटइ’ ख़ातिर सिर्फ बचा था
न्यूड मॉडलिंग का धंधा
व्यंग्य जगत का झेल करीना
पाल रही है अपनी बिटिया
चलने को चलना पड़ता है
तनहा चला नहीं जाता
एक अकेले पहिए को तो
गाड़ी कहा नहीं जाता
जब-जब नारी सरपट दौड़ी
बीच राह में टूटी बिछिया
मूढ़-तुला पर तुल जाते जब
अर्पण और समर्पण भी
विकट परिस्थिति में होता है
तभी आधुनिक जीवन भी
तट पर नाविक मुकर गया है
उफन-उफन कर बहती नदिया