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!! वर्तमान के पथ पर !!
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पग पग कदम बढ़ाते चलना वर्तमान के पथ पर,
आशा-दीप जलाते चलना वर्तमान के पथ पर |
कितनी स्मृतियाँ आएंगी जीवन ठहरा कर जायेंगी,
कभी शांतचित्त हो बैठे खींच भूत में ले जायेंगी,
कर्मठ बन आगे ही बढ़ना वर्तमान के पथ पर,
पग पग कदम बढ़ाते चलना वर्तमान के पथ पर |
घुमड़ घुमड़ कर दुख के बादल छा जायेंगे ,
नयनो से आंसू झर झर बरसा जायेंगे,
वर्तमान के कुछ पल मोती से बिखरेंगे ,
चुनकर मोती से पल माला बुनते जाना,
वर्तमान के पथ पर कदम बढ़ाते जाना |
जीवन का अतीत दुख की लहरें बनकर आयेगा,
शांतचित्त में उथल पुथल करके जायेगा,
लहर लहर कर स्मृतियाँ आती जायेंगी,
चिंता की लहरे उठ उठ कर भंवर बनायेंगी,
फँस कर रह जायेगी उसमें मन की पीड़ा,
तब आशा के दीप संग ले चलते जाना,
वर्तमान के पथ पर कदम बढ़ाते जाना |
भूतकाल जब घोर निराशा बनकर आता,
संघर्षों की कर्मभूमि से दूर भगाता,
रह जाता जीवन का हर इक लक्ष्य अधूरा,
आशा-दीप बुझा, छा जाता अँधियारा।
फिर क्यों अंधियारे में कदम बढ़ाया जाये,
फिर क्यों दुख के पीछे पीछे भागा जाये,
दुख देता अतीत ! सुख देता फिर कौन भला ?
मंथन करें वर्तमान और भूत में कौन बड़ा ?
रूचि मिश्रा
Excellent!
Thanks Kusum..
Very well expressed poem.
Thanks Sonal.