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कितनी रुतों की बारिशें है अटकी हुई

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रात ढलती नहीं दिन गुज़रता नहीं

चाँद सुलग उठा सूरज जलता नहीं

 

एक अजीब खामोशी की बेल है

बूटा कोई सरगोशी का खिलता नहीं

 

चीर के रख दी है किसी ने सड़कें

कोई कदमों से अपने सिलता नहीं

 

पहरे पर है दिल की धड़कने भी

दिल ज़िंदा है मगर धड़कता नहीं

 

कितनी रुतों की बारिशें है अटकी हुई

एक क़तरा भी अश्क़ का बरसता नहीं

 

जाने किस घड़ी का वक़्त है मेरा शकील

गुज़रा ज़माना मेरा वक़्त सरकता नहीं

 

 

 

 

One Comment

  1. Kusum says:

    Waqt gujarata hai . Yaadein thamti Nahin
    Kusum

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