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नूतनता
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पतझड़ में पत्तों का गिरना ,
शाखाएँ सूनी कर जाना ,
खड़खड़ पत्तों का कोलाहल ,
अंतर्मन विचलित कर जाना |
तब अडिग साहसी बन जाना ,
नीरसता तज कर्मठ बनकर ,
नूतन परिवर्तन ले आना ,
जीवन-वन के हे! कल्पवृक्ष |
शाखों से गिरते पत्तों का मत शोर सुनो ,
सूखे झड़ते पत्तों का मत शोक करो ,
भीतर के झंझावातों से मत उलझो ,
बन कल्पवृक्ष नव-पल्लव का आह्वान करो |
कर्तव्य तुम्हरा जीवों को आश्रय देना ,
नन्हीं चिड़िया के लिए नीड़ निर्मित करना ,
कर त्याग पुरातन नूतन का निर्माण करो ,
बन कल्पवृक्ष नव-जीवन का संचार करो |
गिरते पत्तों का कोलाहल ,
सूखी शाखा की नीरवता ,
कितने दिन रहती है जीवित ,
विजयी होती है नूतनता |
सूखी शाखों का आलिङ्गन ,
जिस दिन नव-कोपल से होगा ,
पत्तों के झुरमुट से जिस दिन ,
नव-खग चीं चीं कर बोलेगा ,
जिस दिन चिड़ियों का मधुर गान ,
नीरवता को झकझोरेगा ,
उस दिन पतझड़ का कोलाहल ,
परिवर्तित सुर में बोलेगा |
रूचि मिश्रा
Cycle of birth and rebirth expressed beautifully . Congrats.
Well expressed poem.
‘Ring out the old.
Ring in the new’
Well put in your new words comparing life’s re-cycle to old leaves falling and making place for new fresh ones.
Very good.
Kusum