« ‘पिता'(𝙃𝙖𝙥𝙥𝙮 𝙁𝙖𝙩𝙝𝙚𝙧’𝙨 𝘿𝙖𝙮) | Programmers of the Good God Incorporated » |
लौकडाउन की दुनिया
Uncategorized |
Lockdown geet
लौकडाउन की दुनिया
दीपक राज़दाँ
ना तारों के पास,
ना धरती से दूर,
यह कौन सी दुनिया है,
जो समझ नहीं आती।
यह गलियां हैं सूनी,
यह सड़कें हैं ख़ाली,
यह कौन सी आफ़त है,
जो नज़र नहीं आतीं।
ना तारों के पास….
हम मिलते थे हर रोज़,
हम चलते थे हर रोज़,
यह ठहरी, ठहरी चाल,
अब, समझ नहीं आती।
ना तारों के पास….
कुछ चेहरे थे गंभीर,
कुछ शक्लें थीं हंसती,
अब किसका पर्दा है,
मंशा साफ़ नहीं होती।
ना तारों के पास….
जो प्रेम का दरिया था,
अब प्यार का सागर है,
फिर क्यों बातें आज,
नज़दीक नहीं होती!
ना तारों के पास,
ना धरती से दूर,
यह कौन सी दुनिया है,
जो समझ नहीं आती।