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सेवक या स्वामी??
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कल
की परिचर्चा मे अजब हो गया,एक जनता का सेवक जज हो गया।
जिरह पे जिरह छिड़ी थी बदस्तूर, सब देख सुन भी बैठा था वो मसले से दूर।
जारी था गवाहियों से कुतर्क,पर उसको ना पड़ा रत्ती भर फर्क़।
कानून अंधा होता है ये सुना था,पर कानून बनाने वालो को भी काली पट्टी बंधी थी।
बेबस जनता में मचा था कोहराम भयंकर,और जनसेवकों की टोली मूकदर्शक बन खड़ी थी।
भूतों को कसौटी पे कसा जा रहा था,और समाज टुकड़ों में बटा जा रहा था।
जाने किसके किसके पीछे लोग हांथ धो के पड़े थे,और जिसके खिलाफ सारे सबूत इशारा कर रहे थेवो जनाब कटघरे मे ही नहीं खड़े थे।
जाने कैसे ये ग़ज़ब हो गया,वो जो कल का मुजरिम था आज जज हो गया ।
यकायक सारा मसला ही खत्म हो गया, वो भला मानस आज सुबह ही ज़ज हो गया।
©अभिनव

Abhinav ji
Are you referring to some true experience of yours?
Good expression.
Best wishes
Kusum