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जहाँ तक दुनिया होए ख़तम …..
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जहाँ तक दुनिया होए ख़तम …
तेरी इन भोली आँखों में, मै अपने को खोऊं कितना,
तेरे इन मीठे होटों से, पीऊँ भी और अब कितना,
कि अब तक भरा नहीं मन ये, न होती प्यास भी कुछ कम,
तुम मेरे पास रहो ऐसी, जहाँ तक दुनिया होए ख़तम …..
तेरा ये हाय! मुसकाना, यूं हँसाना और शर्माना,
न तेरे हुस्न से बढकर नशे का कोई मयखाना,
उड़ गए होश अब मेरे, हुआ है नशा अभी ना कम,
तुम मेरे पास रहो ऐसी, जहाँ तक दुनिया होए ख़तम ….
तेरी इन बाँहों को पाकर, लगे सब स्वर्ग सा मुझको,
सिमट आयीं मेरी बाँहों में तुम, वरदान हो मुझको,
तेरी जुल्फों को, गालों को, इन होटों को सराहें हम,
तुम मेरे पास रहो ऐसी, जहाँ तक दुनिया होए ख़तम………….
VishVnand
Zindagi bhari panktiyaan, aapki jeejivisha ko pranaam hai Vishwnand Dada ji!
Dear Vishvanandji
Very sweet poem perhaps addressed to your grand child.
God bless you both.
Kusum