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लक्ष्य-एक चुनौती

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हर रात न मालुम कितने दिनों से 

एक ख्वाब मुझे सताता है,

न मालुम क्यों रोज़ रोज़ आता है… 

रोज़ रात मैं पसीने-पसीने होती हूँ,

बदहवास सी जाग सिसक-सिसक रोती हूँ,

क्योंकि एक ख्वाब मुझे सताता है,

न मालुम क्यों रोज़ रोज़ आता है… 

अनगिनत सीढ़ियों के ऊपरी छोर से 

हंस-हंस कर कोई मुझे बुलाता है,

बड़े मनमोहक, रंगीन, लुभावने,

वह ज़ालिम अपने रूप दिखाता है,

सीढ़ियां चढ़कर उस तक पहुँचने की कोशिश में,

पैर भारी, हलक, डर से  सूखने लगते हैं,

गिरती पड़ती मैं चढ़ती जाती हूँ, पर 

गंतव्य तक पहुंचने से पहले ही,

लड़खड़ा कर गिरती, फिर उठकर बैठ जाती हूँ. 

जब मैंने अपने मित्रों को अपनी कहानी सुनाई,

तब उन्होंने मुझे एक राह दिखाई,

आज की रात उन्हें भी मेरे साथ चलना था,

नाम उनका साहस, निडरता, विश्वास और लगन था.. 

आज मैंने उस छली को नज़र अंदाज़ कर,

केवल और केवल सीढ़ियों पर नज़र टिकाई,

मेरे साथियों ने मुझे पकड़ रखा था,

मैंने भी उन्हें जकड़ रखा था.. 

आज न वह खिलखिलाया, न मुझे ठेंगा दिखाया,

मुझे आगोश में भरकर, मेरे कान में फुसफुसाया,

देखो, मैं तुम्हारी मंज़िल हूँ, तुम्हारा ख़्वाब हूँ,

कब से खड़ा था मैं तुम्हारे इंतज़ार में,

आखिर पा ही लिया तुमने मुझे अपने अनवरत प्रयास में……

अपने अनवरत प्रयास में…… अनवरत प्रयास में……

सुधा गोयल ‘नवीन’ 

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